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रावण लंका का राजा कैसे बना? Ravan Lanka ka Raja Kaise Bana | रावण को लंका कैसे मिली | Ravan Ko Lanka Kaise Mili thi

रावण—एक ऐसा नाम जो शक्ति, बुद्धि और महत्वाकांक्षा का प्रतीक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण, जो लंका का महान राजा बना, उसे लंका कैसे मिली? क्या यह जन्मसिद्ध अधिकार था या उसने इसे अपने पराक्रम से हासिल किया? इस रहस्यमयी कहानी में कई रोचक पहलू छिपे हैं। लंका, जो स्वर्ण नगरी के नाम से प्रसिद्ध थी, क्या पहले से ही राक्षसों की भूमि थी या किसी और का राज्य? रावण ने इस अद्भुत नगरी पर अपना अधिकार जमाने के लिए किन चालाकियों और युद्ध कौशल का सहारा लिया?

इस कहानी में देवताओं, असुरों, और राक्षसों के बीच सत्ता की एक अनोखी जंग सामने आती है। यह जानना दिलचस्प है कि रावण ने कुबेर जैसे शक्तिशाली देवता को कैसे पराजित किया और स्वर्ण नगरी को अपने अधीन कर लिया। यह लेख आपको रावण के लंका पर अधिकार की पूरी प्रक्रिया से अवगत कराएगा, साथ ही यह भी बताएगा कि कैसे रावण ने लंका को अपनी महानता का केंद्र बनाया। इस कहानी के हर मोड़ पर आपको शक्ति, छल, और महत्वाकांक्षा का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। क्या आप तैयार हैं लंका की इस रहस्यमयी यात्रा के बारे में जानने के लिए?


रावण लंका का राजा कैसे बना | Ravan Lanka ka Raja Kaise Bana

त्रेतायुग में, देवता असुर और मानव अपनी अपनी शक्ति और प्रभाव के लिए प्रयास-रत थे। इस युग में एक महान असुर वंश था, जिसका नेतृत्व राक्षसराज 'सुमाली' कर रहे थे। 'सुमाली' असुरों के प्रमुख थे और शक्ति के पुजारी थे। उनका एक ही सपना था - 'असुरों का साम्राज्य पुनः स्थापित करना'।

लेकिन देवताओं के बढ़ते प्रभाव के कारण, 'सुमाली' को पाताल लोक में शरण लेनी पड़ी थी। वह वहां रहकर भी अपने परिवार और कुल की शक्ति बढ़ाने के लिए, उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। सुमाली के मन में एक ही उद्देश्य था — 'लंका' जैसी समृद्ध नगरी पर अधिकार करना। यह नगरी देवताओं की कृपा से 'कुबेर' के अधिकार में थी, जो धन के देवता और असुरों के शत्रु माने जाते थे।

सुमाली को अपनी पुत्री 'कैकसी' से बड़ी उम्मीदें थीं।

उसने सोचा कि कैकसी का विवाह 'ऋषि विश्रवा' से हो जाए, उनकी संतानों के माध्यम से सुमाली को अपने उद्देश्य की पूर्ति का मार्ग दिखाई दिया। क्योंकि विश्रवा ब्रह्मा के पुत्र और अत्यंत तेजस्वी थे। विश्रवा का वंश एक उच्च कोटि का था.

कैकसी और विश्रवा का विवाह होने के बाद, जब कैकसी के बच्चे बड़े हो गए तो, एक दिन सुमाली ने कैकसी से कहा, “पुत्री, तुम्हारे पुत्रों में असाधारण शक्ति है। रावण, कुंभकर्ण, और विभीषण में से रावण वह है, जो हमारी इच्छाओं को पूरा कर सकता है। उसे इस योग्य बनाओ कि वह लंका पर अधिकार कर सके।”

कैकसी ने अपने पिता की बात समझी, और रावण को अपने कुल की महत्ता और सुमाली के सपनों के बारे में बताया। रावण को यह सुनकर गर्व हुआ, कि उसके नाना उसे लंका के सिंहासन पर देखना चाहते हैं।

रावण का स्वभाव पहले से ही महत्वाकांक्षी था। उसे यह ज्ञात था कि वह केवल असुरों का नहीं, बल्कि तीनों लोकों का अधिपति बनने के लिए पैदा हुआ है। नाना सुमाली की योजना ने, उसके भीतर एक नया उत्साह भर दिया। वह जानता था कि लंका पर अधिकार करना उसकी पहली सीढ़ी होगी।

रावण ने अपने भाइयों और बहन को बुलाकर कहा, “हमारा लक्ष्य केवल लंका पर अधिकार करना नहीं है, बल्कि असुरों की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करना है। नाना जी ने जो जिम्मेदारी मुझे सौंपी है, उसे हमें पूरा करना होगा।”

लंका, जिसे देव शिल्पी 'विश्वकर्मा' ने बनाया था, एक सोने की नगरी थी। यह समुद्र के बीच स्थित थी, और अपनी समृद्धि और सुरक्षा के लिए प्रसिद्ध थी। कुबेर ने इस नगरी को अपनी राजधानी बनाया था, और इसे अत्यंत वैभवशाली रूप दिया था। रावण को पता था, कि यदि वह लंका पर अधिकार कर लेता है, तो उसे पूरे संसार में अजेय माना जाएगा। 

रावण ने अपने भाइयों कुंभकर्ण और विभीषण से परामर्श किया। कुंभकर्ण, जो अपने विशालकाय शरीर और बल के लिए प्रसिद्ध था, तुरंत रावण के समर्थन में आ गया। हालांकि विभीषण, जो धर्म का पालन करने में विश्वास रखता था, ने रावण को समझाने की कोशिश की, कि बिना युद्ध के कुछ भी हासिल करना श्रेष्ठ होता है।

विभीषण ने कहा, “भैया, यदि हम बिना रक्तपात के लंका पर अधिकार कर सकते हैं, तो यह हमारे लिए श्रेष्ठ होगा। हमें अपने कार्यों में धर्म का पालन करना चाहिए।”

रावण ने विभीषण की बात सुनकर कहा, “विभीषण, मैं भी अनावश्यक रक्तपात नहीं चाहता। लेकिन लंका को पाना हमारी नियति है, और इसे प्राप्त करने के लिए हमें हर संभव प्रयास करना होगा।”  

रावण ने एक कूटनीतिक चाल चलते हुए, कुबेर को संदेश भेजा। उसने अपने दूत को कुबेर के पास भेजा, और संदेश में लिखा:  

“प्रिय कुबेर, लंका पर शासन करना हमारी कुल परंपरा का हिस्सा है। मैं आपसे आग्रह करता हूं, कि आप स्वेच्छा से इस नगरी को मेरे अधीन कर दें। हम दोनों भाई हैं, और मैं नहीं चाहता कि हमारे बीच किसी भी प्रकार का विवाद हो।”

कुबेर, जो एक शांतिप्रिय और समझदार व्यक्ति थे, इस संदेश को पढ़कर सोच में पड़ गए। उन्होंने विचार किया कि रावण पहले ही ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर चुका है, और उसकी शक्ति अजेय है। यदि वह रावण से युद्ध करता, तो इससे केवल विनाश ही होता। 

कुबेर ने अपने मंत्रियों और सेवकों को बुलाकर कहा, “रावण अजेय है। मैं नहीं चाहता कि, लंका के निर्दोष नागरिक किसी भी संघर्ष का सामना करें। हम लंका को छोड़ देंगे, और कैलाश पर्वत पर अपना नया निवास स्थापित करेंगे।”

यह कहकर कुबेर ने लंका का राजपाठ छोड़ने का निर्णय लिया, और अपने सेवकों के साथ कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान कर गए। 

रावण जब यह समाचार सुनकर लंका पहुंचा, तो वह अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने लंका के मुख्य द्वार पर खड़े होकर कहा, “यह नगरी अब हमारी है। यह हमारे कुल की शक्ति और वैभव का प्रतीक बनेगी। यहां से हम तीनों लोकों पर शासन करेंगे।”

रावण ने लंका में प्रवेश किया, और भव्य समारोह के साथ स्वयं को लंका का राजा घोषित किया। लंका की जनता, जो कुबेर के जाने से थोड़ी असमंजस में थी, रावण के तेज और पराक्रम से प्रभावित हो गई।

रावण का राज्याभिषेक भव्य तरीके से किया गया। उसने अपनी माता कैकसी, और नाना सुमाली को धन्यवाद दिया, और वचन दिया कि वह लंका को एक ऐसी नगरी बनाएगा, जिसका लोहा तीनों लोक मानें।

लंका पर अधिकार के बाद, रावण ने सबसे पहले इस स्वर्णिम नगरी के पुनर्निर्माण, और विस्तार का काम शुरू किया। लंका को कुबेर के जाने के बाद, एक नए नेतृत्व की आवश्यकता थी, और रावण ने अपने दिव्य ज्ञान, और सैन्य कौशल का उपयोग करके इसे, और भी भव्य बनाने का निर्णय लिया। उसने अपने वास्तुकारों और शिल्पकारों को बुलाकर आदेश दिया: “लंका ऐसी नगरी होनी चाहिए, जो तीनों लोकों में अद्वितीय हो। इसकी चमक सूर्य और चंद्रमा को भी मात देनी चाहिए। हर मार्ग, हर महल स्वर्ण और रत्नों से जगमगाए।”

रावण ने लंका के चारों ओर विशाल किलेबंदी करवाई, ताकि कोई भी बाहरी आक्रमण इसे नुकसान न पहुंचा सके। समुद्र के किनारे स्थित इस नगरी की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए, उसने एक शक्तिशाली सेना का गठन भी किया।

रावण ने अपने नाना सुमाली के निर्देशानुसार, असुरों की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के लिए, अपनी सेना को मजबूत करना शुरू किया। उसने पाताल लोक और अन्य असुर राज्यों से योद्धाओं को बुलाया, और एक शक्तिशाली सेना का गठन किया।

रावण ने घोषणा की - “अब असुरों का युग वापस आएगा। देवताओं के साम्राज्य को चुनौती देने के लिए, हमें तैयार रहना होगा। लंका हमारी शक्ति का केंद्र बनेगी, और यहां से हम तीनों लोकों पर शासन करेंगे।”

रावण की सेना में दैत्यों, दानवों और राक्षसों को शामिल किया गया। कुंभकर्ण, जो स्वयं अत्यंत बलशाली था, सेना का प्रमुख योद्धा बना। विभीषण, हालांकि धर्म के मार्ग पर था, लेकिन उसने रावण के राज्य में, प्रशासनिक कार्यों को संभालने की जिम्मेदारी ली।

लंका पर अधिकार करने के बाद, रावण ने देवताओं को चुनौती देना शुरू कर दिया। उसने अपने पराक्रम से सभी दिशाओं में अभियान चलाए, और कई यक्षों, गंधर्वों और नागों को पराजित किया। रावण के बढ़ते प्रभाव से, स्वर्गलोक में हलचल मच गई। इंद्र और अन्य देवता चिंतित हो उठे।

इंद्र ने ब्रह्मा जी के पास जाकर कहा, “प्रभु, रावण अजेय होता जा रहा है। उसकी शक्ति को नियंत्रित करने के लिए कुछ करना होगा।”

ब्रह्मा जी ने इंद्र को समझाया, “रावण को वरदान मिला है, कि उसे केवल मनुष्य और वानर ही परास्त कर सकते हैं। उसका अहंकार ही उसका पतन होगा। समय आने पर उसका अंत निश्चित है।”

रावण की शक्ति और साम्राज्य विस्तार की चर्चा, पूरे ब्रह्मांड में फैल गई। एक दिन 'नारद मुनि' लंका पहुंचे। रावण ने नारद का आदरपूर्वक स्वागत किया और पूछा, “मुनिवर, आप यहां कैसे आए? आपके आने का उद्देश्य क्या है?”

नारद ने मुस्कुराते हुए कहा, “रावण, तुम्हारी कीर्ति चारों दिशाओं में फैल रही है। मैं यह देखने आया हूं, कि यह स्वर्ण नगरी कैसी है। लेकिन मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूं. शक्ति का उपयोग धर्म के मार्ग पर होना चाहिए। अन्यथा, इसका परिणाम विनाशकारी होता है।”

रावण ने नारद की बात को हल्के में लेते हुए कहा, “मुनिवर, मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, वह अपने कुल और असुरों की प्रतिष्ठा के लिए कर रहा हूं। यह मेरा धर्म है।”

नारद ने एक गहरी दृष्टि से रावण को देखा और कहा, “यह मत भूलना कि अहंकार सबसे बड़ा शत्रु है। जब भी शक्ति अहंकार का रूप ले लेती है, उसका अंत निश्चित होता है।”

रावण के शासन में लंका अभूतपूर्व वैभव को प्राप्त हुई। स्वर्ण महलों, अद्वितीय वास्तुकला और समृद्धि के कारण यह नगरी स्वर्ग से भी अधिक सुंदर लगने लगी। लंका के नागरिक रावण के प्रति वफादार थे और उसे एक आदर्श शासक मानते थे।

रावण ने अपने दरबार में विद्वानों, ज्योतिषियों और कलाकारों को भी स्थान दिया। वह स्वयं वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता था और संगीत तथा कला में भी रुचि रखता था। उसके शासन में लंका सांस्कृतिक और सैन्य दृष्टि से अत्यंत समृद्ध हो गई।

कुबेर ने कैलाश पर्वत पर अपना नया निवास बना लिया था। हालांकि वह रावण के प्रति कोई द्वेष नहीं रखता था, लेकिन लंका छोड़ने का दर्द उसके मन में था। एक दिन रावण ने कुबेर को संदेश भेजा: “भ्राता, मैं जानता हूं कि लंका छोड़ना, आपके लिए आसान नहीं था। लेकिन यह हमारे कुल की परंपरा का हिस्सा था। मैं चाहता हूं, कि आप हमारे संबंधों को बनाए रखें, और कभी भी मेरी सहायता की आवश्यकता हो, तो मुझे स्मरण करें।”

कुबेर ने इस संदेश को पढ़कर उत्तर दिया - “रावण, मैं तुम्हारे उदय को देख रहा हूं। मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ हैं। लेकिन ध्यान रखना, शक्ति का उपयोग सच्चाई और धर्म के लिए होना चाहिए।” 

जैसे-जैसे समय बीता, रावण का आत्मविश्वास बढ़ता गया। उसे लगता था कि वह तीनों लोकों का स्वामी बन गया है। लेकिन विभीषण ने उसे एक बार फिर चेताया,  

“भैया, शक्ति का अहंकार मत करो। ब्रह्मा जी ने कहा था कि तुम्हारा अंत एक मनुष्य और वानर के हाथों होगा। इसे हल्के में मत लेना।”

रावण ने हंसते हुए कहा, “विभीषण, एक साधारण मनुष्य और वानर मेरा क्या कर सकते हैं? मुझे अपनी शक्ति पर पूर्ण विश्वास है।”

इस प्रकार, रावण लंका का राजा बन गया, और उसका शासनकाल असुरों के लिए स्वर्ण युग माना गया। लेकिन उसका अहंकार और शक्ति का दुरुपयोग अंततः उसके पतन का कारण बना। रावण का लंका पर अधिकार केवल सत्ता की विजय नहीं थी, बल्कि यह एक ऐसी कहानी थी, जो आने वाले समय में धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष का प्रतीक बनी।



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