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पिशाचमोचनी श्राद्ध क्या है, जानिए तिथि, श्राद्ध विधि, उपाय, कथा और महत्व | Pishachmochni Shraddh

Pishachmochni Shraddh 2024: भारतीय संस्कृति और धर्म में श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने पितृों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और उनकी मुक्ति के लिए विधिपूर्वक अनुष्ठान करता है। श्राद्ध कर्म केवल आत्मा की शांति के लिए नहीं, बल्कि जीवन में आने वाली बाधाओं, पितृ दोष और अकाल मृत्यु के प्रभावों को समाप्त करने के लिए भी आवश्यक माना गया है। पिशाचमोचनी श्राद्ध का विशेष महत्व है, क्योंकि यह दिन उन पितृों के लिए समर्पित है, जो प्रेत योनि में चले गए हैं।

इस वर्ष, पिशाचमोचनी श्राद्ध 14 दिसंबर 2024, शनिवार को पड़ रही है। मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर किया जाने वाला यह श्राद्ध, अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं और प्रेत योनि में फंसे पितृों के उद्धार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइए, इस पवित्र अवसर के महत्व, विधि और लाभ के बारे में विस्तार से जानें।


पिशाचमोचनी श्राद्ध का महत्व:

पिशाचमोचनी श्राद्ध कर्म को शास्त्रों में अत्यधिक पुण्यदायी और पितृ दोष निवारण में कारगर माना गया है। जिन व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हुई हो, जैसे- दुर्घटनाओं, प्राकृतिक आपदाओं या आत्महत्या के कारण, उनकी आत्मा अक्सर प्रेत योनि में चली जाती है। इस स्थिति में उनकी मुक्ति के लिए पिशाचमोचनी श्राद्ध किया जाता है।
यह श्राद्ध न केवल पितृों की शांति के लिए आवश्यक है, बल्कि यह जीवन में आने वाली बाधाओं और कष्टों को भी समाप्त करता है। माना जाता है कि यदि पितृों का श्राद्ध सही विधि से न किया जाए, तो परिवार में पितृ दोष उत्पन्न होता है। इसके कारण व्यक्ति को धन, स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

शास्त्रों के अनुसार, पिशाचमोचनी श्राद्ध करने से:

  1. पितृों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।
  2. व्यक्ति को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
  3. भूत-प्रेतादि बाधाओं से राहत मिलती है।
  4. पितृों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
  5. आत्मा को सद्गति और मोक्ष प्राप्त होता है।

पिशाचमोचनी श्राद्ध की विधि:

इस दिन श्राद्ध और तर्पण करने की एक विशेष विधि है, जिसे शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। इस अनुष्ठान में हर चरण का पालन पवित्रता और भक्ति के साथ करना आवश्यक है।

1. प्रातःकाल की तैयारी:

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  • दक्षिणमुख होकर बैठें, क्योंकि श्राद्ध और तर्पण दक्षिण दिशा की ओर किया जाता है।

2. तर्पण सामग्री की तैयारी:

तर्पण के लिए एक पीतल या तांबे के पात्र का उपयोग करें। उसमें निम्न सामग्री डालें:

  • पानी
  • दूध
  • दही
  • घी
  • शहद
  • कुमकुम
  • अक्षत (चावल)
  • काले तिल
  • कुशा (पवित्र घास)

3. संकल्प:

हाथ में जल लेकर संकल्प करें:
"अमुक व्यक्ति (पितृ का नाम) के प्रेतत्व निवारण हेतु, उनकी आत्मा की शांति और सद्गति के लिए मैं यह पिशाचमोचनी श्राद्ध कर रहा/रही हूँ।"
संकल्प के बाद जल को भूमि पर छोड़ दें।

4. तर्पण प्रक्रिया:

  • अनामिका उंगली में कुश की अंगूठी पहनें।
  • तर्पण के लिए पात्र में रखे जल को दोनों हाथों से अंजलि बनाकर उठाएं।
  • दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगूठे के बीच से जल गिराते हुए तर्पण करें।
  • तर्पण करते समय 108 बार "ॐ अर्यमायै नमः" मंत्र का जाप करें।

5. जल का अर्पण:

तर्पण का जल पीपल के वृक्ष की जड़ों में अर्पित करें। पीपल को पितृों का स्वरूप माना गया है, और इस वृक्ष पर जल चढ़ाने से पितृ तृप्त होते हैं।

6. पितृों के लिए भोजन और दान:

  • पितृों को अर्पित भोजन तैयार करें, जैसे खीर, पूड़ी, और अन्य सात्विक व्यंजन।
  • भोजन को कौवे, गाय और कुत्ते को खिलाएं। इसे पितृों तक पहुंचाने का माध्यम माना गया है।
  • जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और धन का दान करें।

पिशाचमोचनी श्राद्ध की विधि (संक्षिप्त में):

पिशाचमोचनी श्राद्ध की विधि शास्त्रों के अनुसार विशेष और पवित्र प्रक्रिया है। इस दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और दक्षिणमुख होकर किसी पवित्र स्थान पर बैठें। पूजा के लिए पीतल या तांबे के पात्र में जल रखें, जिसमें दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, कुमकुम, अक्षत, काले तिल और कुशा डालें। हाथ में शुद्ध जल लेकर संकल्प करें कि "अमुक व्यक्ति (पितृ का नाम) की आत्मा की शांति और प्रेत योनि से मुक्ति के लिए मैं यह श्राद्ध कर रहा/रही हूँ।" इसके बाद जल को भूमि पर छोड़ दें। फिर अनामिका उंगली में कुश की अंगूठी पहनें और "ॐ अर्यमायै नमः" मंत्र का उच्चारण करते हुए पितृ तीर्थ से 108 बार तर्पण करें। तर्पण करते समय जल को अंजलि में भरकर दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगूठे के बीच से पात्र में गिराएं।

तर्पण के पश्चात संकल्प लें कि यह कार्य सर्व प्रेतात्माओं की शांति और सद्गति के लिए भगवान नारायण के श्रीचरणों में अर्पित है। इसके बाद तर्पण के जल को पीपल के वृक्ष की जड़ों में चढ़ा दें। इसके अतिरिक्त, इस दिन पितृों के लिए सात्विक भोजन तैयार करें और उसे कौवे, गाय, और कुत्ते को खिलाएं। ब्राह्मणों को भोजन कराकर वस्त्र और धन का दान करें। इस दिन व्रत, जप, होम, और भगवान विष्णु की आराधना भी करें और पितृों की सद्गति और परिवार की शुभता के लिए प्रार्थना करें। इस विधि का पालन पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से पितृों की आत्मा को शांति और मुक्ति प्राप्त होती है।


पिशाचमोचनी श्राद्ध के अन्य उपाय:

इस दिन केवल श्राद्ध और तर्पण ही नहीं, बल्कि अन्य धार्मिक कृत्यों का भी महत्व है।

  1. व्रत और तप: इस दिन व्रत रखने से पापों का क्षय होता है और पितृ दोष समाप्त होता है।
  2. जप और होम:
    • भगवान विष्णु और पितृों की शांति के लिए मंत्र जप करें।
    • अग्नि में घी और हवन सामग्री की आहुति दें।
  3. भगवत कथा का श्रवण: इस दिन भगवान विष्णु की कथा सुनने और सुनाने से घर में सुख-शांति आती है।
  4. पीपल की पूजा: पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप जलाएं और सात परिक्रमा करें।
  5. दान-पुण्य: ब्राह्मणों और गरीबों को अन्न, वस्त्र, और धन दान करें।

पिशाचमोचनी श्राद्ध की कथा | Pishachmochni Shraddh Katha

प्राचीन काल में अवंती नामक राज्य के राजा चंद्रकेतु अत्यंत न्यायप्रिय और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध थी। राजा चंद्रकेतु ने जीवन में हमेशा धर्म और सत्य का पालन किया था। लेकिन एक दिन उनके जीवन में ऐसा संकट आया जिसने उनकी पूरी प्रजा और राज्य को भय और त्रासदी में डाल दिया।

राजा के महल में एक अनजाना संत आया और कहा, "हे राजन! आपके पितृ प्रेत योनि में भटक रहे हैं और उनके प्रेतत्व के कारण आपके राज्य में अकाल, रोग और विपत्तियाँ बढ़ रही हैं। प्रजा में भय व्याप्त है, और आपके राज्य में भूत-प्रेतों का प्रकोप बढ़ गया है। यदि आप पितरों की आत्मा को शांति नहीं देंगे, तो यह विपत्ति बढ़ती जाएगी।"

राजा चंद्रकेतु इस बात को सुनकर व्याकुल हो उठे। उन्होंने संत से इसका उपाय पूछा। संत ने बताया कि मार्गशीर्ष माह की शुक्ल चतुर्दशी को 'पिशाचमोचनी श्राद्ध' करना ही इसका उपाय है। यह श्राद्ध पितरों को प्रेत योनि से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करता है और राज्य को संकटों से उबारता है।

राजा ने संत से पूछा, "हे महात्मन, मेरे पितृ प्रेत योनि में क्यों भटक रहे हैं? मैंने अपने जीवन में हमेशा धर्म का पालन किया है और श्राद्ध कर्म समय पर किए हैं। फिर भी यह दोष मेरे पितृों को क्यों लगा?"

संत ने ध्यानमग्न होकर राजा के पितृों का कारण बताया। संत ने कहा, "राजन, आपके पितामह महाराज सोमकेतु ने अपने जीवन में कुछ गलतियाँ की थीं। उन्होंने अपने जीवनकाल में किसी गरीब ब्राह्मण का धन छीन लिया था, जिससे उनकी आत्मा को प्रेत योनि का श्राप मिला। इसके अलावा, उन्होंने श्राद्ध कर्म में भी त्रुटि की थी, जिसके कारण उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली। जब तक आप पिशाचमोचनी श्राद्ध नहीं करेंगे, तब तक उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी।"

राजा चंद्रकेतु ने यह सुनकर संत से पिशाचमोचनी श्राद्ध की विधि पूछी और इसे करने का निश्चय किया।

राजा ने मार्गशीर्ष माह की शुक्ल चतुर्दशी को पिशाचमोचनी श्राद्ध करने की तैयारी आरंभ की। उन्होंने अपने मंत्रियों, पुरोहितों और राज्य के विद्वानों को बुलाकर इसकी विधि का विस्तार से वर्णन कराया। राजा ने पवित्र गंगा नदी के तट पर श्राद्ध कर्म करने का निश्चय किया।

पिशाचमोचनी श्राद्ध के दिन प्रातःकाल राजा ने स्नान किया और दक्षिणमुख होकर बैठ गए। उन्होंने पीतल के पात्र में जल, दूध, दही, घी, शहद, काले तिल, कुशा, और अक्षत रखा। संकल्प करते हुए उन्होंने कहा, "मैं अपने पितृ सोमकेतु की आत्मा को प्रेत योनि से मुक्त करने के लिए यह पिशाचमोचनी श्राद्ध कर रहा हूँ।"

इसके बाद उन्होंने 108 बार "ॐ अर्यमायै नमः" मंत्र का जाप करते हुए तर्पण किया। तर्पण के बाद उन्होंने पितृों के लिए खीर, पूड़ी और अन्य सात्विक भोजन बनवाया और उसे कौवे, गाय और कुत्ते को अर्पित किया। अंत में, उन्होंने ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान दिया।

जब राजा चंद्रकेतु ने विधिपूर्वक पिशाचमोचनी श्राद्ध संपन्न किया, तो आकाश से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ। राजा के पितृ सोमकेतु ने दिव्य रूप में प्रकट होकर कहा, "हे पुत्र चंद्रकेतु! तुम्हारे इस पवित्र श्राद्ध के कारण मुझे प्रेत योनि से मुक्ति मिली है। मैं अब भगवान विष्णु के श्रीचरणों में सद्गति प्राप्त कर रहा हूँ। तुम्हारा यह कार्य न केवल मेरे लिए, बल्कि तुम्हारे पूरे वंश के लिए पुण्यकारी होगा।"

राजा के पितामह ने राजा को आशीर्वाद दिया और कहा, "तुम्हारे राज्य में अब कोई विपत्ति नहीं आएगी। तुम्हारी प्रजा सुखी रहेगी, और तुम्हारे वंश में कोई भी पितृ दोष से ग्रस्त नहीं होगा।"

यह देखकर राजा और प्रजा ने भगवान विष्णु और पितृों को धन्यवाद दिया।

पिशाचमोचनी श्राद्ध के बाद राजा चंद्रकेतु के राज्य में सुख-शांति लौट आई। प्रेत बाधाओं और अकाल का अंत हो गया। प्रजा में उत्साह और आनंद व्याप्त हो गया। राजा ने इस दिन को अपने राज्य में उत्सव के रूप में मनाने का आदेश दिया।

उन्होंने पिशाचमोचनी श्राद्ध की विधि और महत्व को अपने राज्य की प्रजा को बताया। राजा ने प्रजा से आग्रह किया कि जिनके परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हुई हो, या जो पितृ दोष से ग्रस्त हों, वे इस दिन श्राद्ध और तर्पण अवश्य करें। उन्होंने कहा कि यह दिन पितृों की आत्मा को शांति और सद्गति देने के लिए अत्यंत पवित्र और प्रभावकारी है।

पिशाचमोचनी श्राद्ध की यह कथा हमें सिखाती है कि पितृों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म अत्यंत आवश्यक है। यदि पितृों का उद्धार नहीं किया जाता, तो यह उनके साथ-साथ परिवार के लिए भी बाधाओं का कारण बनता है। यह कथा इस बात पर भी जोर देती है कि श्राद्ध केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति हमारी कृतज्ञता और जिम्मेदारी का प्रतीक है।

इसके अतिरिक्त, यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि प्रेत योनि में फंसे पितृ केवल हमारे कर्मों से ही मुक्त हो सकते हैं। पिशाचमोचनी श्राद्ध, विशेष रूप से मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी के दिन, पितृ दोष से मुक्ति का सबसे प्रभावकारी उपाय है।

पिशाचमोचनी श्राद्ध की पौराणिक कथा राजा चंद्रकेतु के माध्यम से यह संदेश देती है कि पितरों की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध कर्म का पालन करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है। यह केवल पितृों को शांति प्रदान करने का साधन नहीं, बल्कि स्वयं और अपने परिवार की उन्नति और समृद्धि का भी मार्ग है।


पिशाचमोचनी श्राद्ध का धार्मिक और आध्यात्मिक प्रभाव:

धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि प्रेत योनि में गए पितृों की आत्मा अक्सर परिवार के सदस्यों को परेशान करती है। यह उनके असंतोष और अशांति का परिणाम होता है। पिशाचमोचनी श्राद्ध न केवल उनकी आत्मा को शांति प्रदान करता है, बल्कि उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि भी लौट आती है।

इस तिथि पर किए गए श्राद्ध कर्म से:

  1. पितृ तृप्त होकर परिवार को खुशहाल और बाधारहित जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
  2. व्यक्ति को अपने जीवन में चल रही समस्याओं, जैसे धन की कमी, स्वास्थ्य समस्याओं और मानसिक अशांति से छुटकारा मिलता है।
  3. पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति के जीवन में आने वाले अवरोध समाप्त हो जाते हैं।
  4. भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

पिशाचमोचनी श्राद्ध कर्म केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है। हमारे जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा घटित होता है, उसका गहरा संबंध हमारे पितृों से होता है। उनकी आत्मा की संतुष्टि और शांति के लिए श्राद्ध कर्म करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।

शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति अपने पितृों का श्राद्ध नहीं करता, उसे कई जन्मों तक पितृ दोष का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत, जो व्यक्ति पिशाचमोचनी श्राद्ध करता है, उसे परिवार की उन्नति, संपत्ति, और सुख-शांति प्राप्त होती है।


निष्कर्ष: Pishachmochni Shraddh

पिशाचमोचनी श्राद्ध एक पवित्र अनुष्ठान है, जो न केवल हमारे पितृों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करता है, बल्कि हमारे जीवन को सुखद और बाधामुक्त बनाता है। यह दिन विशेष रूप से उन पितृों के लिए महत्वपूर्ण है, जो प्रेत योनि में अटके हुए हैं और जिन्हें मुक्ति की आवश्यकता है।

14 दिसंबर 2024 को आने वाला यह पवित्र दिन, हमारे पितृों की आत्मा को तृप्त करने और उनके आशीर्वाद से जीवन की हर समस्या को दूर करने का सुनहरा अवसर है। इसलिए इस दिन विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण करके अपने पूर्वजों की शांति और मोक्ष के लिए प्रार्थना अवश्य करें।

"पितरों का आशीर्वाद ही हमारे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।"

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