Brihaspativar Vrat Katha: प्रिय भक्तों, यहाँ पर गुरुवार के दिन के लिए बृहस्पति देव से जुड़ी 2 पौराणिक कथाएँ दी गई हैं। गुरुवार के दिन, पूरे श्रद्धा भाव से व्रत करके, इन कथाओं को सुनने से बृहस्पति देव और भगवान विष्णु जी की कृपा से, भक्तों को सारे सुखों की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। तो आइए, श्रद्धा और भक्ति भाव से इन दोनों कथाओं को पढ़ते हैं।
बृहस्पतिवार व्रत की पौराणिक कथा | Brahaspativar Vrat Katha
प्राचीन भारत में एक प्रतापी और दानी राजा का शासन था। उनकी उदारता और धर्म-परायणता की चर्चा चारों ओर होती थी। राजा नित्य गरीबों, ब्राह्मणों और जरूरतमंदों की सहायता किया करते थे। वह हमेशा धर्म कर्म में लगे रहते थे, दान पुण्य का महत्व समझते थे, और भगवान का पूजन अर्चन नियमित रूप से करते थे।
बृहस्पतिवार व्रत कथा |
लेकिन उनकी रानी उनके विपरीत थी। वह दान पुण्य को समय और धन की बर्बादी मानती थी। उसे न तो भगवान के प्रति आस्था थी, न ही दान देने का कोई मूल्य समझ आता था। जब भी राजा गरीबों को धन या अन्न देते, रानी उन्हें रोकने का प्रयास करती। वह हमेशा यही कहती कि सारा धन लुटा देने से उनका भविष्य असुरक्षित हो जाएगा।
एक दिन राजा शिकार के लिए वन में गए। उसी दौरान, एक साधु महाराज भिक्षा मांगते हुए महल पहुंचे। यह साधु कोई और नहीं, स्वयं बृहस्पति देव थे, जो साधु का वेश धारण कर राजा के दान पुण्य का रहस्य जानने और उनकी रानी को शिक्षा देने आए थे। उन्होंने रानी से भिक्षा मांगी।
रानी ने कठोर स्वर में उत्तर दिया, "साधु महाराज! मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। मेरा पति दिन रात दान करता रहता है, और इस कारण हमारा धन धीरे धीरे समाप्त हो रहा है। मेरी तो यही इच्छा है कि, यह सारा धन खत्म हो जाए, ताकि इसे बांटने की नौबत ही न आए।"
साधु ने शांत स्वर में समझाने का प्रयास किया, "देवी! धन और संतान तो हर किसी के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। यह भगवान का दिया हुआ वरदान है। अगर आपके पास अधिक धन है, तो उसे अच्छे कार्यों में लगाएं। भूखों को भोजन दें, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाएं, निर्धन कन्याओं का विवाह कराएं। इन कार्यों से आपका यश और पुण्य दोनों बढ़ेंगे।"
लेकिन रानी पर साधु के उपदेश का कोई असर नहीं हुआ। उसने तिरस्कार भरे शब्दों में कहा, "महाराज, मैं ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह बांटना पड़े।"
साधु ने रानी की बातें सुनकर गंभीर स्वर में कहा, "यदि तुम्हारी यही इच्छा है, तो तथास्तु।" उन्होंने कहा, "तुम बृहस्पतिवार को घर लीपकर पीली मिट्टी से सिर धोकर स्नान करना, भट्टी चढ़ाकर कपड़े धोना। ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा।"
इतना कहकर साधु महाराज वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
साधु के बताए अनुसार, रानी ने बृहस्पतिवार को ठीक वैसा ही किया। कुछ ही महीनों में महल का सारा धन खत्म हो गया। राजा रानी को भोजन के लिए तरसना पड़ा। जो कभी राजा रानी थे, वे अब गरीबी में जीवन बिताने को मजबूर हो गए।
राजा ने अपनी पत्नी से कहा, "यहां पर हम भूखों मर रहे हैं, और मैं इस देश में कुछ काम भी नहीं कर सकता, क्योंकि सभी मुझे पहचानते हैं। इसलिए मैं परदेश जाकर कुछ काम करूंगा। तुम यहां रहो।"
राजा परदेश गए और जंगल में लकड़हारे का काम करने लगे। वे रोज जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचते और जैसे तैसे अपना पेट भरते।
एक बार, बृहस्पतिवार के दिन, राजा जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठे थे। उनके मन में अपनी विपन्न दशा को लेकर गहरी चिंता थी। उसी समय, साधु वेष में बृहस्पति देव प्रकट हुए। उन्होंने पूछा, "हे लकड़हारे! इस सुनसान जंगल में तू चिंतित क्यों बैठा है?"
राजा ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, "महात्मा जी! मैं एक राजा था, लेकिन आज दरिद्रता में जीवन जी रहा हूं। मेरी पत्नी ने गुरुवार के दिन बृहस्पति देव का अपमान किया था, जिसका दंड हमें आज मिल रहा है।"
साधु ने राजा को समझाते हुए कहा, "तुम्हारे कष्ट का कारण तुम्हारी पत्नी का बृहस्पतिवार के दिन वीर भगवान का निरादर करना है। लेकिन यदि तुम अब भी भगवान बृहस्पति का विधिवत व्रत और पूजन करोगे, तो तुम्हारे सारे कष्ट समाप्त हो जाएंगे। तुम बृहस्पतिवार को चने और मुनक्का का प्रसाद बनाकर भगवान की कथा कहो। जल और प्रसाद भक्तों में बांटो। ऐसा करने से तुम्हारे जीवन में फिर से सुख और संपत्ति आएगी।"
राजा ने साधु से कहा, "महात्मा जी, मैं लकड़ियां बेचकर इतना धन नहीं कमा पाता कि इससे प्रसाद बना सकूं। मेरे पास कुछ भी नहीं है।"
साधु ने उत्तर दिया, "चिंता मत करो। बृहस्पतिवार को लकड़ी बेचने पर तुम्हें दोगुना धन मिलेगा। उसी से तुम भगवान का पूजन कर सकते हो।" इतना कहकर साधु अंतर्ध्यान हो गए।
अगले बृहस्पतिवार, राजा ने लकड़ी बेची, और उसे वाकई दोगुना धन मिला। उसने चने और मुनक्का का प्रसाद बनाकर बृहस्पतिदेव की कथा कही। उसी दिन से उसके जीवन में बदलाव आना शुरू हो गया।
लेकिन अगला गुरुवार आते आते राजा व्रत करना भूल गए। उसी दौरान, राजा ने देखा कि उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया और आदेश दिया कि सभी लोग उनके महल में भोजन करें। राजा ने भी इस आदेश का पालन किया। लेकिन वहां राजा पर चोरी का झूठा आरोप लग गया, और उन्हें कारागार में डाल दिया गया।
कारागार में पड़े राजा को अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने बृहस्पतिदेव को याद किया और माफी मांगी। उसी रात, बृहस्पतिदेव साधु के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने कहा, "हे राजा! चिंता मत करो। बृहस्पतिवार को कारागार के दरवाजे पर तुम्हें चार पैसे मिलेंगे। उनसे भगवान का पूजन करना। तुम्हारे सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे।"
आशा से भरे राजा ने वैसा ही किया। अगले बृहस्पतिवार, उन्हें चार पैसे मिले। राजा ने प्रसाद बनाकर बृहस्पतिदेव की कथा कही।
उस रात, बृहस्पतिदेव ने नगर के राजा को स्वप्न में आदेश दिया, "जिस लकड़हारे को तुमने कारागार में डाला है, वह निर्दोष है। उसका अपमान मत करो। यदि तुमने उसे मुक्त नहीं किया, तो तुम्हारा राज्य नष्ट हो जाएगा।"
बृहस्पतिवार (गुरुवार) व्रत कथा सुनने के लिए इस वीडियो को देखें और चैनल को सब्स्क्राइब करें।
सुबह, राजा ने स्वप्न का अनुसरण करते हुए लकड़हारे को रिहा कर दिया। जब उन्होंने अपने महल में देखा, तो रानी का खोया हुआ हार सही स्थान पर मिला। राजा ने लकड़हारे से क्षमा मांगी और उन्हें धन धान्य देकर सम्मान पूर्वक विदा किया।
अगले दिन, राजा जंगल में लकड़ी काटने गया। वह लकड़ी लेकर आ रहा था कि रास्ते में एक तेज़ आंधी आई। उसकी सारी लकड़ियाँ उड़ गईं और उसे खाली हाथ घर लौटना पड़ा। दुःखी होकर राजा फिर से जंगल में चला गया।
जंगल में उसे वही साधु मिले, जो वास्तव में बृहस्पतिदेव थे। राजा ने अपनी व्यथा सुनाई। साधु ने कहा, "हे भोले मनुष्य, तुमने बृहस्पतिवार का व्रत करना क्यों छोड़ दिया? जो कोई बृहस्पतिदेव की पूजा और व्रत को बीच में छोड़ता है, उसे इसी प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। अब तुम एक बार फिर व्रत करो और सच्चे मन से बृहस्पतिदेव से प्रार्थना करो।"
राजा ने साधु की बात मान ली। उसने लगातार बारह गुरुवार व्रत किया। बारहवें गुरुवार को उसे जंगल में एक गुप्त खज़ाना मिला। उसने उस खज़ाने को अपने पास रखा और उसकी मदद से नगर में एक धर्मशाला और एक मंदिर बनवाया। अब राजा का जीवन सुखी हो गया।
और धीरे धीरे, राजा और रानी के जीवन में सुख शांति लौट आई थी। राजा ने बृहस्पतिवार व्रत को अपना नित्य नियम बना लिया था। प्रतिदिन तीन बार कथा कहना और प्रत्येक गुरुवार को पूरे विधि विधान से पूजा करना, उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया था। लेकिन समय के साथ राजा थोड़ा लापरवाह हो गया। उसे लगा कि अब सब कुछ ठीक है, इसलिए व्रत और पूजा में थोड़ा ढील देने लगा।
एक बार, राजा ने बृहस्पतिवार का व्रत नहीं किया। उसी दिन से अजीब अजीब घटनाएँ होने लगीं। राजा के खजाने में अचानक कमी आने लगी। व्यापार में घाटा होने लगा। नगर में अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। लोग राजा से नाराज़ होने लगे। राजा ने महसूस किया कि उसने बृहस्पतिदेव की उपासना में कमी कर दी है।
राजा ने पुनः गुरुवार के दिन व्रत और कथा प्रारंभ की, लेकिन इस बार उसने अधिक श्रद्धा से बृहस्पति देव से प्रार्थना की। उसी रात राजा को स्वप्न में बृहस्पति देव ने दर्शन दिए और कहा, "हे राजन, तुम्हारी भक्ति में कमी के कारण ही ये कष्ट आए हैं। लेकिन तुम्हारी सच्ची भक्ति को देखकर मैं पुनः तुम्हारे जीवन में सुख शांति लाऊँगा। याद रहे, व्रत और कथा में कभी ढील मत देना।"
इसी दौरान, रानी की एक दासी, जो राजा के महल में वर्षों से सेवा करती आ रही थी, उसने भी बृहस्पतिवार व्रत के महत्त्व को समझा। दासी निर्धन थी और उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन उसने रानी से प्रार्थना की, "मालकिन, मैं भी गुरुवार का व्रत करना चाहती हूँ। क्या आप मुझे इसके नियम और विधि बता सकती हैं?"
रानी ने उसे व्रत और कथा की पूरी विधि बताई और कहा, "इस व्रत को सच्चे मन और श्रद्धा से करने पर बृहस्पति देव सभी इच्छाएँ पूरी करते हैं। लेकिन ध्यान रहे, व्रत में पीले वस्त्र पहनना, पीले भोजन का सेवन करना, और गुरुवार को बड़ों का सम्मान करना अति आवश्यक है।"
दासी ने व्रत करना शुरू किया। उसने लगातार सात गुरुवार तक व्रत किया। सातवें गुरुवार को उसने देखा कि एक साधु महल के द्वार पर भिक्षा माँगने आए। दासी ने अपने हिस्से का सारा भोजन और पानी उन्हें अर्पित कर दिया। साधु ने आशीर्वाद दिया और कहा, "तेरे जीवन में अब सुख और समृद्धि का वास होगा। तुझे शीघ्र ही संतान सुख प्राप्त होगा।"
कुछ महीनों के भीतर ही दासी के घर में धन संपत्ति बढ़ने लगी। उसकी बंजर भूमि पर फसलें लहराने लगीं। और जैसा साधु ने कहा था, उसे संतान सुख भी प्राप्त हुआ।
समय बीतने के साथ दासी ने गुरुवार को व्रत करना छोड़ दिया। जब दासी का बेटा बड़ा हुआ तो, वह बेहद आलसी और गुस्सैल था। वृद्ध दासी रोज भगवान से प्रार्थना करती कि उसका बेटा सुधर जाए। किसी ने उसे बृहस्पतिवार के व्रत की सलाह दी।
दासी ने फिर से, गुरुवार का व्रत करना शुरू किया। उसने अपने बेटे को भी व्रत करने के लिए कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। दासी ने हार नहीं मानी और अपने बेटे के लिए प्रार्थना जारी रखी।
कुछ समय बाद, एक दिन बेटा बीमार पड़ा और काम करने में असमर्थ हो गया। तभी उसकी माँ ने उसे बृहस्पति देव की कथा सुनाई और कहा, "यदि तुम गुरुवार का व्रत करोगे, तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है।" बेटे ने माँ की बात मान ली और व्रत करना शुरू किया।
कुछ ही महीनों में बेटे का स्वभाव बदलने लगा। वह मेहनती और विनम्र हो गया। उसने अपनी माँ की सेवा करना शुरू कर दिया। अब वृद्ध दासी और उसका बेटा सुखी जीवन बिताने लगे। दासी की भक्ति और बृहस्पति देव की कृपा को देखकर नगर के अन्य लोग भी व्रत करने लगे।
इस कथा को सुनने और व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। इसलिए इसे पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ करना चाहिए। अंत में, सभी को प्रसाद ग्रहण कर "जय बृहस्पति देव" का जयकारा लगाना चाहिए।
बृहस्पतिवार की व्रत कथा - 2 । गुरुवार व्रत कथा । Guruwar Vrat Katha
प्राचीन काल में एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। उसके पास न तो धन संपत्ति थी, और न ही कोई संतान। उसकी पत्नी भी अत्यंत मलीन अवस्था में रहती थी। वह न तो कभी स्नान करती थी और न किसी देवता की पूजा। इस स्थिति से ब्राह्मण बहुत दुखी था। उसने अपनी पत्नी को कई बार समझाने का प्रयास किया कि, पूजा पाठ और धर्म कर्म से उनके जीवन की कठिनाइयाँ समाप्त हो सकती हैं, परंतु उसकी पत्नी ने कभी उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया।
समय बीतता गया, और ब्राह्मण के घर की हालत बद से बदतर होती चली गई। लेकिन कहते हैं, भगवान हर किसी के जीवन में एक दिन बदलाव लाते हैं। ब्राह्मण के जीवन में भी वह दिन आया। भगवान की कृपा से उसकी पत्नी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। यह कन्या उनके जीवन का सबसे बड़ा सुख बन गई।
कन्या के बढ़ने के साथ साथ उसमें अद्भुत गुण प्रकट होने लगे। वह न केवल सुंदर और बुद्धिमान थी, बल्कि ईश्वर में अटूट श्रद्धा भी रखती थी। जब वह बड़ी हुई, तो उसने हर बृहस्पतिवार को व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने का संकल्प लिया। प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके वह भगवान विष्णु का नाम जप करती और पूजा करती। इसके बाद वह विद्यालय जाने के लिए घर से निकलती।
विद्यालय जाते समय वह अपनी मुट्ठी में जौ भरकर ले जाती थी। पाठशाला के मार्ग में वह इन जौ के दानों को एक एक करके गिरा देती थी। आश्चर्यजनक बात यह थी कि जब वह शाम को लौटती, तो वही जौ स्वर्ण के हो जाते। वह स्वर्ण के इन जौ को बीनकर अपने घर ले आती।
एक दिन, जब वह बालिका स्वर्ण के जौ को सूप में डालकर फटक रही थी, तो उसके पिता ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया। पिता को यह देखकर आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा, "बेटी! यदि तुम सोने के जौ को साफ कर रही हो, तो तुम्हारे पास सोने का सूप भी होना चाहिए।"
कन्या ने अपने पिता की बात को दिल से लिया। अगले दिन गुरुवार था। उसने बृहस्पति देव से प्रार्थना की, "हे बृहस्पतिदेव! यदि मैंने सच्चे मन से आपकी पूजा की हो, तो कृपया मुझे सोने का सूप प्रदान करें।"
उसकी सच्ची प्रार्थना से बृहस्पति देव प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसकी इच्छा पूरी कर दी। जब कन्या जौ फैलाकर वापस लौट रही थी, तो उसे मार्ग में बृहस्पतिदेव की कृपा से सोने का सूप प्राप्त हुआ। वह खुशी खुशी उस सूप को घर ले आई और उसमें जौ को फटककर साफ करने लगी।
एक दिन की बात है, जब कन्या अपने घर के आँगन में बैठी सोने के सूप में जौ फटक रही थी, तभी उस नगर का राजकुमार वहाँ से गुजर रहा था। कन्या का सौंदर्य और उसका यह अद्भुत कार्य देखकर राजकुमार मंत्रमुग्ध हो गया। वह उसी क्षण से उसके प्रति आकर्षित हो गया।
घर लौटकर राजकुमार का मन व्याकुल हो उठा। उसने न तो भोजन किया और न ही जल ग्रहण किया। वह चुपचाप अपने कक्ष में उदास होकर लेट गया। राजमहल में सभी लोग यह देखकर परेशान हो गए।
राजा ने जब अपने पुत्र की यह स्थिति देखी, तो तुरंत उससे इसका कारण पूछा। राजा ने कहा, "पुत्र! क्या किसी ने तुम्हारा अपमान किया है? या कोई और समस्या है? मुझे बताओ, मैं तुम्हारे हर दुःख का समाधान करने के लिए तैयार हूँ।"
राजकुमार ने थोड़ी झिझक के साथ कहा, "पिताजी, मुझे किसी ने कोई कष्ट नहीं दिया है। लेकिन मैंने एक कन्या को देखा है, जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। मैं उसी कन्या से विवाह करना चाहता हूँ।"
यह सुनकर राजा चकित हो गए। उन्होंने कहा, "पुत्र, ऐसी अद्भुत कन्या का पता लगाना तुम्हारा कार्य है। यदि तुम उसका पता लगा सकते हो, तो मैं तुम्हारा विवाह उससे अवश्य करवाऊँगा।"
राजकुमार ने तुरंत उस कन्या का पता लगाकर अपने पिता को बताया। राजा ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि वे उस कन्या के परिवार से बात करें।
मंत्री ब्राह्मण के घर पहुँचे और सारा हाल सुनाया। ब्राह्मण और उसकी पत्नी पहले तो इस प्रस्ताव को लेकर आशंकित थे, परंतु राजकुमार की इच्छा को समझते हुए उन्होंने अपनी सहमति दे दी। विधिपूर्वक विवाह संपन्न हुआ, और ब्राह्मण की कन्या राजमहल की रानी बन गई।
कन्या के विवाह के बाद ब्राह्मण के घर की स्थिति पहले जैसी हो गई। गरीबी ने फिर से उनके घर में डेरा डाल लिया। भोजन के लिए अन्न का मिलना भी कठिन हो गया। ब्राह्मण इस स्थिति से अत्यंत दुःखी हो गया।
ब्राह्मण अपनी दयनीय स्थिति से बहुत परेशान था। गरीबी इतनी बढ़ गई कि उसे अपने परिवार का भरण-पोषण करना भी कठिन हो गया। अंततः एक दिन उसने अपनी बेटी के पास जाने का निर्णय लिया। वह राजमहल पहुँचा और अपनी पुत्री से अपनी व्यथा सुनाई।
राजमहल में अपनी बेटी से मिलकर ब्राह्मण ने कहा, "बेटी, तुम्हारे विवाह के बाद हमारे घर की स्थिति और भी खराब हो गई है। न भोजन है, न वस्त्र, और न ही कोई आशा। तुम्हारी मां की स्थिति भी बहुत दयनीय है।"
यह सुनकर ब्राह्मण की पुत्री बहुत दुःखी हो गई। उसने अपने पिता को सांत्वना दी और उन्हें भोजन और वस्त्र के साथ-साथ बहुत सारा धन भी दिया। ब्राह्मण धन लेकर अपने घर लौट गया। कुछ समय तक उसका जीवन सुख पूर्वक व्यतीत हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ समय बाद उनकी स्थिति फिर से पहले जैसी हो गई।
इस बार ब्राह्मण ने फिर अपनी बेटी से मिलने का निश्चय किया। जब वह राजमहल पहुँचा और अपनी पुत्री को सारा हाल सुनाया, तो उसकी बेटी ने कहा, "पिताजी! इस समस्या का समाधान यह है कि आप माताजी को मेरे पास ले आइए। मैं उन्हें सिखाऊँगी कि वे किस प्रकार इस गरीबी से छुटकारा पा सकती हैं।"
ब्राह्मण अपनी पत्नी को लेकर राजमहल पहुँचा। उसकी पुत्री ने मां से कहा, "मां! यदि आप गरीबी और दुःख से छुटकारा पाना चाहती हैं, तो आपको भगवान विष्णु की पूजा करनी होगी और हर गुरुवार को व्रत रखना होगा।"
लेकिन उसकी मां ने अपनी बेटी की कोई भी बात मानने से इंकार कर दिया। उसने पूजा पाठ में कोई रुचि नहीं दिखाई। यहाँ तक कि प्रातःकाल उठकर स्नान करना भी उसे अस्वीकार्य लगा।
ब्राह्मण की पत्नी की इस उदासीनता से उसकी पुत्री बहुत नाराज हुई। उसने निर्णय लिया कि अपनी मां को सही मार्ग पर लाने के लिए सख्ती करनी होगी। एक रात, उसने अपनी मां के कमरे से सभी सामान निकाल दिया और उसे एक खाली कोठरी में बंद कर दिया।
अगले दिन सुबह उसने अपनी मां को कोठरी से निकाला और कहा, "अब आपको मेरी हर बात माननी होगी। पहले स्नान करें, फिर भगवान विष्णु की पूजा करें, और गुरुवार को व्रत रखें। यदि आप ऐसा नहीं करेंगी, तो मैं आपको घर वापस नहीं जाने दूंगी।"
यह सुनकर ब्राह्मण की पत्नी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने अपनी बेटी की बात मान ली। अगले गुरुवार को उसने प्रातःकाल स्नान किया, विष्णु भगवान की पूजा की, और पूरे विधि-विधान के साथ व्रत रखा।
धीरे धीरे ब्राह्मण की पत्नी ने हर गुरुवार को व्रत करना और भगवान विष्णु की पूजा करना अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया। इसके परिणामस्वरूप उनके घर की स्थिति में तेजी से सुधार होने लगा।
बृहस्पतिदेव की कृपा से ब्राह्मण का परिवार न केवल धनवान हो गया, बल्कि उनके घर में हर प्रकार का सुख समृद्धि भी लौट आई। उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होने लगीं।
ब्राह्मण की पत्नी, जो पहले पूजा पाठ में विश्वास नहीं करती थी, अब पूरी श्रद्धा के साथ हर गुरुवार को व्रत करती और भगवान विष्णु की आराधना करती। इससे उनके जीवन में इतना बड़ा बदलाव आया कि आसपास के लोग भी उनकी स्थिति को देखकर चकित रह गए।
ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने केवल धन और सुख ही प्राप्त नहीं किया, बल्कि भगवान की कृपा से उन्हें संतान सुख भी प्राप्त हुआ। वे पुत्रवती हुए और उनके घर में उत्सव का माहौल छा गया।
इस प्रकार बृहस्पतिदेव की कृपा से उनकी जिंदगी बदल गई। यह सब उनकी पुत्री की श्रद्धा और गुरुवार व्रत की विधि के कारण संभव हुआ।
ब्राह्मण की यह कथा यह सिखाती है कि सच्चे मन और श्रद्धा से बृहस्पतिवार व्रत रखने और भगवान विष्णु की आराधना करने से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने इस लोक में सुख समृद्धि का आनंद लिया और अपने जीवन के अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुए।
गुरुवार का व्रत अत्यंत फलदायी है। इस दिन व्रत उपवास करके कथा पढ़ने या सुनने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र युक्त गुरुवार से व्रत आरंभ करके, अगले 7 गुरुवार उपवास करने से बृहस्पति ग्रह की हर पीड़ा से मुक्ति मिलती है। गुरुवार का व्रत पूरे श्रद्धा भाव से करने से व्यक्ति को सारे सुखों की प्राप्ति होती है।
गुरुवार के दिन श्री हरि विष्णु जी की पूजा का विधान है। कई लोग बृहस्पति देव और केले के पेड़ की भी पूजा करते हैं। बृहस्पति देव को बुद्धि का कारक माना जाता है। केले के पेड़ को हिन्दू धर्मानुसार बेहद पवित्र माना जाता है। बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। बृहस्पतिवार व्रत कथा के बाद श्रद्धा के साथ आरती की जानी चाहिए। इसके बाद प्रसाद बांटकर उसे ग्रहण करना चाहिए।
ध्यान रखें की, बृहस्पतिवार व्रत के समय किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए और हर किसी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। तभी बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं और आपकी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। इस प्रकार कथा समाप्त होती है। यदि आपने इसे ध्यानपूर्वक सुना, तो अवश्य ही आपकी हर समस्या का समाधान निकलेगा।
बोलो बृहस्पति देव की जय! भगवान विष्णु की जय!
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