Baitarani River: क्या मृत्यु के बाद की दुनिया सचमुच इतनी भयानक होती है, जितना गरुण पुराण में वर्णित है? क्या यमलोक तक पहुंचने का मार्ग केवल आत्मा की यातना से भरा है, या इसके पीछे छिपा है कोई गहरा रहस्य? वैतरणी नदी, जो पापियों के लिए सबसे बड़ा दंड और सद्-कर्महीन आत्माओं के लिए भयावह यात्रा का केंद्र है, अपने भीतर कितने भयानक सच छुपाए हुए है?
भगवान विष्णु और नारद मुनि की इस रहस्यमय और सिहरन पैदा करने वाली यात्रा में आप जानेंगे वैतरणी नदी का हर खौफनाक रहस्य — जहां पापी अपनी सबसे भयानक सजा पाते हैं। क्या आप इस डरावने सत्य का सामना करने के लिए तैयार हैं? आइए जानते हैं - कैसा होता है यमलोक का रास्ता? और नरक की वैतरणी नदी का खौफनाक रहस्य।
गरुण पुराण में वर्णित यह कथा उस समय की है, जब नारद मुनि तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए, भगवान विष्णु के पास पहुँचे। नारद जी ने भगवान विष्णु से पूछा - "हे नारायण! यह तो आपने बार बार समझाया है कि संसार में किए गए कर्म ही मनुष्य की आत्मा का भाग्य तय करते हैं। लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता कि जो लोग पाप करते हैं, वे अपने दुष्कर्मों का दंड कैसे पाते हैं? मैंने सुना है कि नरक जाने के मार्ग में वैतरणी नदी का सामना करना पड़ता है। यह नदी कैसी है? और क्यों इसे इतना भयानक माना जाता है?"
भगवान विष्णु नारद मुनि की इस प्रश्न पर मंद मंद मुस्कुराए और कहा, "हे नारद, तुमने जो पूछा है, वह न केवल गूढ़ है, बल्कि अत्यंत डरावना भी। वैतरणी नदी का रहस्य (Mystery of Vaitarni River) जानना साधारण बात नहीं है। यह वह नदी है जो पापी आत्माओं के लिए नर्क का प्रवेश द्वार बनती है। लेकिन इसे जानने के लिए तुम्हें अपने हृदय को दृढ़ रखना होगा, क्योंकि इसके दृश्य और इसकी यातनाएं आत्मा को कंपा देती हैं।"
नारद जी का जिज्ञासु स्वभाव तो ऐसा था कि डर उन्हें रोक नहीं सकता था। उन्होंने भगवान विष्णु से निवेदन किया, "हे प्रभु, मैं सत्य जानना चाहता हूं। कृपया मुझे वैतरणी नदी के रहस्य को स्वयं अनुभव करने का अवसर दें।"
भगवान विष्णु कुछ देर शांत रहे और फिर अपनी दिव्य दृष्टि से नारद मुनि को नरक के मार्ग और वैतरणी नदी की यात्रा पर ले जाने का निर्णय किया। उन्होंने कहा, "नारद, तुम मेरी शक्ति के माध्यम से वह सब देखोगे, जो एक आत्मा को मृत्यु के बाद देखना पड़ता है। लेकिन याद रखना, जो तुम देखोगे, वह केवल तुम्हारे अनुभव के लिए होगा। इसे समझो, लेकिन उससे जुड़ने का प्रयास मत करना।"
भगवान विष्णु ने अपनी माया से नारद मुनि को एक दिव्य मार्ग पर खड़ा कर दिया। नारद ने अपने चारों ओर घना अंधकार देखा। रास्ता कांटों और पत्थरों से भरा था, और हर ओर से डरावनी चीखें सुनाई दे रही थीं। जैसे ही नारद आगे बढ़े, उन्होंने देखा कि रास्ते के किनारे अधमरे से लोग घिसटते हुए चल रहे थे। उनके शरीर से मांस झूल रहा था, और उनके चेहरों पर भय और पीड़ा के असंख्य भाव थे।
नारद का हृदय कंप-कंपा गया, लेकिन वह अपनी जिज्ञासा के कारण आगे बढ़ते रहे। कुछ दूरी पर उन्होंने देखा कि एक विशाल नदी का द्वार उनके सामने है। यह वही द्वार था जो "वैतरणी नदी" की शुरुआत को चिह्नित करता था।
जैसे ही नारद द्वार के पास पहुंचे, उन्होंने एक डरावना दृश्य देखा। नदी का पानी लाल नहीं, बल्कि गाढ़ा और चिपचिपा था, मानो वह रक्त और मवाद का मिश्रण हो। उसमें भयानक दुर्गंध थी जो सांस लेना तक कठिन बना रही थी। किनारे पर मानव हड्डियों के ढेर लगे थे, और पानी में छोटे छोटे, लेकिन भयानक कृमि तैर रहे थे।
नारद मुनि ने भगवान विष्णु से पूछा, "प्रभु, यह कैसा स्थान है? क्या यही वह वैतरणी है, जिसके बारे में मैंने सुना था?"
भगवान विष्णु की आवाज गूंज उठी, "हां नारद, यही वैतरणी है। यह नदी केवल उन आत्माओं के लिए भयानक है जिन्होंने अपने जीवन-काल में पाप किए हैं। यह रक्त, मवाद और गंदगी से बनी है, और इसके अंदर अन-गिनत पीड़ा-दायक प्राणी निवास करते हैं। जो आत्माएं इसे पार नहीं कर पातीं, वे इसमें सदा के लिए डूब जाती हैं।"
नारद ने देखा कि नदी के किनारे एक भयानक जीव खड़ा था, जिसकी आंखें जलती हुई आग की तरह चमक रही थीं। वह किसी आत्मा को पकड़ कर नदी के अंदर फेंक रहा था। नारद यह देखकर स्तब्ध रह गए। उस आत्मा ने चीखते हुए कहा, "मुझे माफ कर दो! मैं इसे पार नहीं कर सकता!" लेकिन उसकी चीखें व्यर्थ थीं। जैसे ही वह आत्मा नदी में गिरी, जल के अंदर छिपे भयानक जीवों ने उसे घेर लिया। विशाल मगरमच्छों ने उसके अंगों को चीर डाला, और नुकीले चोंच वाले गिद्धों ने उसकी खाल नोचनी शुरू कर दी। आत्मा की चीखें आसमान तक गूंज गईं।
नारद यह सब देखकर भय से कांप उठे और पूछा, "हे प्रभु, ये जीव कौन हैं और ऐसा क्यों कर रहे हैं?"
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, "यह नदी पापी आत्माओं के लिए यमलोक का प्रवेश द्वार है। इस नदी में जो जीव रहते हैं, वे उनके कर्मों का फल दिलाने वाले दूत हैं। गिद्ध, सांप, और मगरमच्छ उन पापों के प्रतीक हैं जो इन आत्माओं ने अपने जीवनकाल में किए थे।"
नारद ने पूछा, "हे प्रभु, क्या यह नदी सभी आत्माओं के लिए इतनी भयानक होती है?"
भगवान विष्णु ने कहा, "नहीं नारद, यह नदी केवल पापी आत्माओं के लिए भयावह है। जो लोग अपने जीवन काल में दान पुण्य करते हैं, ईश्वर की भक्ति करते हैं, और धर्म का पालन करते हैं, उनके लिए यह नदी शांत और निर्मल हो जाती है। वे इसे बिना किसी पीड़ा के पार कर लेते हैं।"
नारद ने ध्यान दिया कि नदी में केवल रक्त और मवाद नहीं था, बल्कि उसमें से धुआं और आग भी निकल रही थी। पानी का हर कण मानो जल रहा था। कुछ आत्माएं जो नदी पार करने का प्रयास कर रही थीं, वे जलती हुई चिल्ला रही थीं। उनकी खाल झुलस रही थी, और नदी के किनारे बैठे यमदूत उन पर क्रूरता से हंस रहे थे।
नारद ने विष्णु से कहा, "हे प्रभु, यह दृश्य सहन करना मेरे लिए कठिन हो रहा है। इन आत्माओं को ऐसा कष्ट क्यों दिया जा रहा है?"
भगवान विष्णु ने गंभीरता से कहा, "ये आत्माएं वही हैं जिन्होंने अपने जीवन में दुष्कर्म किए हैं। इन्हें यह नदी उनके कर्मों के अनुसार दंड देती है।"
नारद अब तक इस नदी के रहस्यों का एक छोटा अंश ही देख पाए थे। लेकिन उनके मन में यह प्रश्न था कि यह नदी कितनी लंबी है और इसके अंदर और क्या क्या भयानक रहस्य छिपे हैं।
उन्होंने भगवान विष्णु से निवेदन किया, "हे प्रभु, अब मैं इस नदी के और भी गहरे रहस्यों को जानना चाहता हूं। क्या यह नदी वास्तव में कभी समाप्त होती है? और क्या इसके पार जाने का कोई मार्ग है?"
भगवान विष्णु ने गंभीर स्वर में कहा, "नारद, वैतरणी एक साधारण नदी नहीं है। यह न केवल पापियों की परीक्षा लेती है, बल्कि उनके हर पाप को दंड के रूप में सजीव बना देती है। इसके रहस्यों को समझना तुम्हारे लिए सरल नहीं होगा। लेकिन यदि तुम्हारी इच्छा है, तो मैं तुम्हें इसके और गहरे रहस्यों को दिखाऊंगा।"
इसके बाद भगवान विष्णु ने अपनी शक्ति से नारद मुनि को वैतरणी नदी के भीतर प्रवेश कराया। अब नारद इस भयावह नदी के बारे में और भी करीब से जानने वाले थे।
जैसे ही नारद ने नदी में प्रवेश किया, उन्हें एक भयानक ठंड महसूस हुई। यह ठंड शरीर को कंपा देने वाली नहीं, बल्कि आत्मा को हिला देने वाली थी।
नारद ने चारों ओर देखा, तो पाया कि नदी का पानी केवल रक्त और मवाद से नहीं बना था, बल्कि उसमें आत्माओं की चीखें घुली हुई थीं। हर बूंद से किसी पापी की चीखती हुई आत्मा का करुण क्रंदन सुनाई देता था।
नदी के अंदर एक अदृश्य खिंचाव था, जो आत्माओं को अपनी ओर खींचता था। जो आत्माएं नदी में गिरती थीं, वे बाहर निकलने के लिए संघर्ष करतीं, लेकिन वह चिपचिपा पानी उन्हें अपनी ओर और गहराई में खींच लेता। जैसे जैसे वे अंदर डूबतीं, उनके शरीर से रक्त और मांस गलने लगता। नारद ने यह देखकर पूछा, "हे प्रभु, ये आत्माएं ऐसी क्यों दिख रही हैं? इनके साथ ऐसा क्या हो रहा है?"
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, "नारद, यह नदी पापी आत्माओं के लिए दंड का प्रतीक है। जो व्यक्ति अपने जीवन काल में दूसरों को कष्ट देते हैं, उनका हर पाप यहां सजीव हो उठता है। यह चिपचिपा जल उनकी आत्मा को गलाता है, क्योंकि उन्होंने दूसरों के हृदय को चोट पहुंचाई है।"
नारद ने आगे बढ़ते हुए देखा कि नदी के अंदर केवल चीखती हुई आत्माएं ही नहीं थीं, बल्कि इसमें विचित्र और डरावने जीव भी तैर रहे थे। ये जीव अत्यंत विशाल और विकृत आकार के थे। किसी के दस सिर थे, तो किसी के सौ हाथ। उनके शरीर पर नुकीले कांटे थे, और उनकी आंखों से आग निकल रही थी।
नारद ने देखा कि एक आत्मा नदी के किनारे पर आने की कोशिश कर रही थी। तभी एक विशाल जीव, जो सांप और मगरमच्छ का मिश्रण लग रहा था, पानी से निकला और उसने आत्मा को अपने जबड़ों में दबोच लिया। उसकी कर्कश चीखें सुनाई दीं, लेकिन जीव ने उसे नदी के भीतर खींच लिया।
नारद भयभीत होकर बोले, "प्रभु, ये कौन से जीव हैं? क्या ये भी नरक का हिस्सा हैं?"
भगवान विष्णु ने कहा, "ये जीव पापियों के कर्मों के दूत हैं। हर जीव उस पाप का प्रतीक है, जो आत्मा ने जीवनकाल में किया है। उदाहरण के लिए, जो लोग लोभ और धोखाधड़ी में फंसे रहते हैं, उन्हें ये विशाल सांप और मगरमच्छ अपनी दया से वंचित करते हैं। यह सब उनके कर्मों का दंड है।"
नारद अब नदी के और अंदर गए। वहां का दृश्य पहले से भी अधिक डरावना था। पानी पूरी तरह लाल सा चमक रहा था, मानो उसमें आग लगी हो। वहां आत्माओं का एक विशाल झुंड नदी पार करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन जैसे ही वे कदम बढ़ाते, पानी में से विकृत हाथ निकलते और उन्हें खींचकर डुबा देते।
कुछ आत्माओं के शरीर पर बेतहाशा कांटे उगने लगते, और वे चीखते चिल्लाते हुए खुद को बचाने की कोशिश करतीं। कुछ के अंग अचानक से फट जाते, और उसमें से रक्त और कीड़े गिरने लगते। इन आत्माओं की चीखें पूरे वातावरण में गूंज रही थीं।
नारद ने भयभीत होकर पूछा, "प्रभु, ये आत्माएं इतनी पीड़ा क्यों सह रही हैं? क्या यह उनका अंत है?"
भगवान विष्णु ने कहा, "नारद, यह केवल उनकी यात्रा की शुरुआत है। वैतरणी नदी केवल एक प्रवेश द्वार है। जो आत्माएं इसे पार नहीं कर पातीं, वे अनंत काल तक इसमें फंसी रहती हैं। जो इसे पार कर जाती हैं, वे यमलोक की और भी भयावह यातनाओं का सामना करती हैं।"
नारद ने बहुत प्रयास किया, लेकिन उन्हें नदी का कोई अंत नहीं दिखा। उन्होंने विष्णु से कहा, "प्रभु, क्या यह नदी कभी समाप्त नहीं होती? क्या इसका कोई अंत है?"
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, "नारद, यह नदी पापियों के लिए अनंत है। इसका कोई अंत नहीं है। लेकिन जो आत्माएं पुण्य-वान हैं, उनके लिए यह नदी छोटी हो जाती है। वह इसे बिना किसी बाधा के पार कर लेते हैं। यह कर्म के आधार पर बदलती रहती है।"
नारद ने देखा कि नदी के किनारे यमदूत खड़े थे। उनके हाथों में चमचमाते त्रिशूल और लोहे की चाबुकें थीं। वे आत्माओं को पकड़ कर नदी में धकेल देते थे। जो आत्माएं बाहर आने की कोशिश करतीं, उन्हें वे क्रूरता से मारते और फिर से नदी में फेंक देते।
नारद ने पूछा, "प्रभु, ये यमदूत इतना क्रूर व्यवहार क्यों करते हैं? क्या इन्हें किसी प्रकार की दया नहीं आती?"
भगवान विष्णु ने कहा, "नारद, यमदूत केवल न्याय करते हैं। जो आत्माएं पापी हैं, उनके लिए दया का कोई स्थान नहीं। उन्होंने अपने जीवन में दूसरों के साथ क्रूरता की थी, और अब वही क्रूरता उन्हें सहनी पड़ रही है।"
जैसे ही नारद और आगे बढ़े, उन्होंने एक अजीब सी आवाज़ सुनी। यह आवाज़ बेहद डरावनी और हड्डियों तक कंपा देने वाली थी। वह आवाज़ नदी के सबसे गहरे हिस्से से आ रही थी। नारद ने भगवान विष्णु से पूछा, "प्रभु, यह आवाज़ किसकी है?"
भगवान विष्णु ने गंभीर स्वर में कहा, "यह आवाज़ उन आत्माओं की है जो सबसे बड़े पापी हैं। वे नदी के सबसे गहरे हिस्से में बंद हैं। इन्हें न केवल नदी में रहना पड़ता है, बल्कि इन्हें हर पल अपने पापों को जीवित होकर देखना पड़ता है। यह उनका सबसे बड़ा दंड है।"
नारद ने देखा कि कुछ आत्माएं नदी के गहरे पानी में अपने ही प्रतिबिंब को देख रही थीं। वह प्रतिबिंब उनकी जीवन काल की गलतियों और पापों का सजीव रूप था। जैसे ही वे अपने प्रतिबिंब को देखतीं, वे चीखने लगतीं। वह दृश्य इतना भयावह था कि नारद की आत्मा तक कांप उठी।
भगवान विष्णु ने कहा, "नारद, अब तुम्हें वापस चलना होगा। यह नदी केवल पापियों के लिए बनी है। तुम्हें इसके रहस्यों को देखना चाहिए, लेकिन इसके प्रभाव में नहीं आना चाहिए।"
लेकिन नारद अभी भी और जानने को उत्सुक थे। उन्होंने विष्णु से निवेदन किया, "हे प्रभु, मुझे इसके और गहरे रहस्यों को देखने दीजिए। क्या यहां से निकलने का कोई मार्ग है?"
नारद मुनि का साहस और जिज्ञासा उन्हें वैतरणी नदी के और गहरे हिस्से की ओर खींच रही थी। हालांकि उनकी आत्मा अब तक इस भयानक यात्रा से कांप चुकी थी, फिर भी उनके भीतर छिपा सत्य जानने का जुनून उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था।
भगवान विष्णु ने एक बार फिर चेतावनी देते हुए कहा, "नारद, अब तुम उस हिस्से की ओर जा रहे हो, जहां केवल सबसे बड़े और अ-मानवीय पापियों की आत्माएं कैद होती हैं। जो तुम देखोगे, वह तुम्हारे भीतर भय और करुणा का सागर पैदा करेगा। क्या तुम अब भी इसके लिए तैयार हो?"
नारद ने विनम्र स्वर में कहा, "हे प्रभु, मुझे हर हाल में इस नदी का अंतिम सत्य जानना है। कृपया मुझे यह अनुभव करने दें।"
भगवान विष्णु के संकेत पर नारद को वैतरणी के गहरे अंधकार में प्रवेश करने दिया गया। अब वह अपने जीवन की सबसे भयावह यात्रा पर थे।
जैसे जैसे नारद नदी के और अंदर बढ़ते गए, चारों ओर का वातावरण और डरावना होता गया। नदी का पानी अब खौलने लगा था, और उसमें से गाढ़े धुएं के भंवर उठ रहे थे। हर भंवर के अंदर फंसी आत्माएं मदद के लिए चीख रही थीं। नारद को लग रहा था कि यह चीखें सीधे उनकी आत्मा तक पहुंच रही हैं।
नारद ने देखा कि नदी का यह हिस्सा अलग ही तरह की यातनाओं का घर था। यहां आत्माओं पर न केवल पानी और जीवों का कहर बरस रहा था, बल्कि हवा में लहराते अदृश्य चाबुक उनकी आत्माओं को बार बार मार रहे थे।
भगवान विष्णु ने कहा, "नारद, यह नदी का सबसे गहरा भाग है। इसे 'महा-भय क्षेत्र' कहते हैं। यहां वह आत्माएं कैद होती हैं, जिन्होंने अपने जीवन में न केवल दूसरों को नुकसान पहुंचाया, बल्कि मानवता के विरुद्ध पाप किए। इनका दंड कभी समाप्त नहीं होता।"
नारद ने देखा कि नदी के इस हिस्से में हर आत्मा का पाप एक भौतिक रूप लेकर उनकी यातना का कारण बन चुका था। एक आत्मा, जिसने अपने जीवन में हजारों लोगों को धोखा दिया था, को एक विशालकाय जाल में उलझा हुआ देखा गया। वह जाल हर पल और कड़ा होता जा रहा था, उसकी आत्मा की चीखें गूंज रही थीं, लेकिन जाल उसे और अधिक जकड़ रहा था।
दूसरी ओर, एक आत्मा जो हत्या का दोषी थी, बार बार अपने ही द्वारा मारे गए लोगों के प्रेतों से घिरी हुई थी। वे प्रेत उसे नाखूनों और दांतों से खरोंच रहे थे, और वह आत्मा नदी के उबलते पानी में कूदकर उनसे बचने की कोशिश कर रही थी। लेकिन हर बार जब वह नदी में गिरती, उसकी आत्मा जलने लगती और फिर से वह प्रेतों के बीच फंसी जाती।
नारद भय से कांपते हुए बोले, "हे प्रभु, क्या यह यातना कभी समाप्त नहीं होती?"
भगवान विष्णु ने गंभीर स्वर में कहा, "नारद, इन आत्माओं का पाप इतना बड़ा है कि इनका दंड कभी समाप्त नहीं होगा। ये वही देखती और महसूस करती हैं, जो इन्होंने अपने कर्मों से दूसरों को सहने पर मजबूर किया था।"
जैसे ही नारद ने और गहराई में देखा, उन्होंने पाया कि नदी का तल अंधकार-मय था। वहां कोई ठोस जमीन नहीं थी, बल्कि केवल एक अंत-हीन खाई थी। इस गर्त में गिरने वाली आत्माएं हमेशा के लिए गायब हो जाती थीं।
नारद ने पूछा, "प्रभु, जो आत्माएं इस गर्त में गिरती हैं, उनका क्या होता है? क्या वे यमलोक पहुंच जाती हैं, या उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है?"
भगवान विष्णु ने रहस्यमय स्वर में कहा, "यह गर्त 'अंधता-मिस्र' कहलाता है। यहां गिरने वाली आत्माएं अपने पापों के बोझ तले इतनी दब चुकी होती हैं कि उनका अस्तित्व अनंत-काल तक भटकने के लिए अभिशप्त हो जाता है। वे न तो पूर्ण रूप से समाप्त होती हैं, न ही उन्हें मोक्ष मिलता है। उनका दंड एक ऐसा शून्य है, जहां केवल यातना ही यातना है।"
नारद की आंखें अब भय और करुणा से भरी हुई थीं। उन्होंने देखा कि गर्त के किनारे कई आत्माएं खुद को गिरने से रोकने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन नदी की धाराएं उन्हें खींचती जा रही थीं।
नारद ने नदी के बीच में एक विशाल वृक्ष को देखा। यह वृक्ष इतना विकृत था कि इसकी शाखाएं तलवारों और भालों जैसी थीं। इसकी जड़ें नदी के पानी में फैली हुई थीं, और हर जड़ से लटकती हुई आत्माएं दिखाई दे रही थीं।
भगवान विष्णु ने बताया, "यह 'रक्त-पात वृक्ष' है। जिन लोगों ने अपने जीवन में निर्दोषों का रक्त बहाया है, उनकी आत्माएं इस वृक्ष की जड़ों में फंस जाती हैं। हर शाखा उनके पापों की गवाही देती है और हर जड़ उनकी आत्मा को अनंत-काल तक अपने शिकंजे में जकड़े रखती है।"
नारद ने देखा कि हर बार जब आत्मा इस वृक्ष से बाहर निकलने की कोशिश करती, उसकी शाखाएं उसे चीर फाड़ कर वापस जड़ तक खींच लेतीं।
नारद ने अचानक एक अत्यंत तेज गर्जना सुनी। उन्होंने नदी के सबसे गहरे हिस्से में एक अद्भुत दृश्य देखा। वहां एक आत्मा अपने चारों ओर आग से घिरी हुई थी। वह आत्मा बार बार पानी में कूदने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पानी उसे और अधिक जलाने लगता था।
भगवान विष्णु ने कहा, "यह आत्मा उस व्यक्ति की है, जिसने न केवल मानवता का अपमान किया, बल्कि अपने पापों से हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेला। यह व्यक्ति इतना बड़ा पापी था कि इसकी आत्मा को न तो यमलोक स्वीकार करता है, न स्वर्ग। यह वैतरणी नदी के इस हिस्से में हमेशा के लिए दंडित रहेगा।"
नारद ने भगवान विष्णु से पूछा, "हे प्रभु, क्या इस नदी से कभी कोई मुक्त हो सकता है? क्या किसी आत्मा के लिए इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता है?"
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, "नारद, केवल वे आत्माएं जो सच्चे हृदय से अपने पापों का प्रायश्चित करती हैं और जिन्होंने किसी न किसी रूप में पुण्य किया है, वे वैतरणी को पार कर पाती हैं। लेकिन जिनका जीवन केवल पाप और अन्याय से भरा है, उनके लिए इस नदी से कोई मुक्ति नहीं।"
नारद ने विष्णु से निवेदन किया, "हे प्रभु, अब मुझे इस भयावह यात्रा से बाहर निकालिए। मैंने इसके रहस्यों को जान लिया है और मैं अब इसे सहन करने में असमर्थ हूं।"
भगवान विष्णु ने नारद मुनि को अपनी दिव्य शक्ति से नदी के बाहर खींच लिया। नारद के मन में वैतरणी नदी की यातनाओं और आत्माओं की चीखों की स्मृतियां अमिट हो चुकी थीं।
वह गहरी सोच में डूब गए और बोले, "हे प्रभु, इस यात्रा ने मुझे मानव जीवन के महत्व का अहसास कराया। मैं अब यह समझ गया हूं कि जीवन में सद्-कर्मों का कितना बड़ा महत्व है। मैं इसे दूसरों को भी समझाने का प्रयास करूंगा।"
भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा, "यही इस यात्रा का उद्देश्य था, नारद। यह नदी केवल पापियों के लिए है। मनुष्य को सदैव यह याद रखना चाहिए कि उसके कर्म ही उसके भाग्य का निर्धारण करते हैं।"
नारद मुनि अब वैतरणी नदी के पूरे रहस्य को जान चुके थे। उन्होंने निर्णय लिया कि वह इस भयावह सत्य को सभी जीवों तक पहुंचाएंगे, ताकि वे अपने जीवन में गलतियों से बचें और सद्-कर्म की राह पर चलें।
लेकिन वैतरणी नदी का रहस्य आज भी अनगिनत आत्माओं के लिए अज्ञात है। यह नदी पाप और न्याय का ऐसा प्रतीक है, जो यह सिखाती है कि हर कर्म का फल अवश्य मिलता है — चाहे वह कितना भी छोटा या बड़ा क्यों न हो।
आशा है कि नरक की वैतरणी नदी के खौफनाक रहस्य की यह कथा आपको पसंद आएगी।
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